Home > Message from the Vice Chairperson
पूज्य स्वामी जी एवं श्रद्धेय आचार्य श्री का सपना है कि राष्ट्र सुदृढ़ और सशक्त हो, उसके लिए देश की नव पीढ़ी को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जो भारत व भारतीयता के अनुरूप हो। बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ आचार - विचार व व्यवहार की शिक्षा का भी विधिवत ज्ञान करवाया जाए |
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आचार्यकुलम की स्थापना की गई। जहाँ विद्यार्थियों को केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं दिया जाता अपितु भारतीय सभ्यता-संस्कृति व सुसंस्कारों को उनके अन्दर स्थापित किया जाता है |
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत: -
नवीनता के साथ सर्वत्र सभी ओर से नेक विचार मिलें ऐसी शिक्षा व्यवस्था जहाँ मिले वह है –‘‘आचार्यकुलम’
यहाँ बच्चों को केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं दिया जाता बल्कि संस्कृति एवं संस्कारों को उनके अन्दर रूपांतरित किया जाता है | इस शिक्षा व्यवस्था में, सुसंस्कारों एवं सुशिक्षा के साथ-साथ सर्वोत्तम स्वास्थ्य हेतू अनिवार्य रूप से प्रतिदिन योग को दिनचर्या का अंग रखा गया है | योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है बल्कि यह शरीर के साथ-साथ मन-बुद्धि को सुदृढ़ व तीव्र कर जीवन जीने की कला सिखाता है | संस्कारों को जीवित रखना है तो योग और यज्ञ को जीवन का अनिवार्य अंग बनाना ही होगा |
यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभि :-
यज्ञ विश्व ब्रह्माण्ड का केंद्र है | अच्छी बुद्धि,विचार व कर्मों का निर्माण करने का सामर्थ्य यज्ञ से निकली अग्नि में होता है | आचार्यकुलम में यज्ञ प्रतिदिन की दिनचर्या का अभिन्न अंग है |जो बच्चे यज्ञ, योग, सुसंस्कार एवं सकारात्मकता से परिपूर्ण वातावरण में रहकर शिक्षित होंगे उनमें देश-धर्म के प्रति सम्मान और जागरूकता एवं उनके व्यक्तित्व में नेतृत्व के गुण अवश्य पैदा होंगे |
आचार्यकुलम से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी ज्ञानवान, चरित्रवान, गुणवान देशभक्त बनकर दुनिया के हर कोने में से प्राप्त शिक्षा-संस्कारों का आरोहण करते हुए देश के गौरव को सम्पूर्ण विश्व में गौरवान्वित करेंगे |